नीला ,पीला ,लाल ,हरा ,
रंगो से ये जहाँ भरा।
इन रंगो की एक दिन
हो रही थी सभा ,
सभी कर रहे थे
अपनी महिमा बयां।।
सबसे पहले हरा रंग आया ,
खुद को सबसे प्रांशु बताया,
प्रकर्ति का एक मुलभुत
मुझ से ही दर्शाया।
वंही नीला रंग मंच पे आया
अंबर से लेकर जल की धरा
सब में मै ही समाया।
इतराते हुए लाल पीले रंग
ने भी अपना पक्ष सुनाया
खिलती धुप की लालिमा
में सबने हममे ही पाया।।
सफ़ेद रंग दूर खड़ा ,
सोच रहा अपनी पंक्तियाँ।
बाकी रंगो ने प्रश्न उठाया,
सफ़ेद को बेरंग बताया।
ये कहते हुए सफ़ेद ने
अपना महत्व बताया,
जिसमे चाहूँ उसमे ढल जाऊं
खो कर अपना अस्तित्व
तुमको नई पहचान दिलाऊँ।।