कदमो के उसके दिशा दिखाई,
पथ से हर बाधा हटाई।
सवालों ने उसके
नयी पहचान जो ढूढ़नी चाही
तो सामने आई एक नई इकाई
दर्शानें ज़जीरे की बनावट की सचाई।।
कर्तव्य के आवरण तले
अहसानों का बूना जाता हैं ताना बाना ,
हक़ के सुनाये जाते हैं बायान।
खुद को टुकड़े टुकड़े बाँटा गया
चुकानें अहसानोका फ़रमान
चुकानें अहसानोका फ़रमान
की अंत में रह गयी वो
बसएक टुकड़े की हक़दार
बसएक टुकड़े की हक़दार
उसकी सोच
जिसकी थी न किसी को दरकार
क्योंकी उसमे था
"भिनता का आभास"
"भिनता का आभास"