लाल गुलाबी पीले फूल,
खिले उपवन -उपवन ,
भरमाते भवरे बाघों में,
लहराती सरसों खेतो में ,
चेह्चाते पक्षी डालो पे ,
मानो कहना चाह रहे हो की
छेड़ी हैं प्रकर्ति ने फिर एक नयी धुन।।
नीमो की सुखी डाली पे
मंजरी और फूटती नव कोपल ,
हुआ हैं पतझड़ के बाद बसंत का आगमन ,
देने निर्देशन
'अंत में ही हैं आरम्भ का आख्यापन'
विस्तृत प्रकृति का हर अंश लेता नया ढंग।,
बनने अवयव उस चक्र का,
जिसके अस्तित्व का सर्जक हैं परम।।
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