Tuesday 29 December 2015

आँखों की ज़बां


 
देख आयने में ,
सोच रही थी मै ज़रा ,
रंगो का ये जहाँ आँखों से मैंने पढ़ा ,
पर करती हैं ये खुद में ही सब बयां ,
क्या होती नहीं आँखों की भी अपनी एक ज़बां 
कभी ये इधर उधर भर्माय  ,
चुपके से कुछ कहना  चाहे ,
कभी दृढ़ता का ये एहसास कराये ,
कभी एक झलक में ही,
 दर्द का आभास हो जाए।  
कभी नज़रो में ये खोना चाहें ,
कभी घबराहे कभी शर्माए ,
डरते हुए झुक जाए की कहीं 
हकीकत बयां हो न जाए।।
 
 
Image Source- pinimg.com
 


1 comment:

  1. कभी घबराहे कभी शर्माए ,
    डरते हुए झुक जाए की कहीं
    हकीकत बयां हो न जाए।।

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ। कमाल का वर्णन वाह !

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