देख आयने में ,
सोच रही थी मै ज़रा ,
रंगो का ये जहाँ आँखों से मैंने पढ़ा ,
पर करती हैं ये खुद में ही सब बयां ,
क्या होती नहीं आँखों की भी अपनी एक ज़बां
कभी ये इधर उधर भर्माय ,
चुपके से कुछ कहना चाहे ,
कभी दृढ़ता का ये एहसास कराये ,
कभी एक झलक में ही,
दर्द का आभास हो जाए।
कभी नज़रो में ये खोना चाहें ,
कभी घबराहे कभी शर्माए ,
डरते हुए झुक जाए की कहीं
हकीकत बयां हो न जाए।।
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कभी घबराहे कभी शर्माए ,
ReplyDeleteडरते हुए झुक जाए की कहीं
हकीकत बयां हो न जाए।।
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ। कमाल का वर्णन वाह !