बारिश की कुछ नन्ही बुँदे
आ मिली धरती से यूँ
की फैली सौंधी-सौंधी खुश्बू चारो ओर ,
बूंदो को देख तारकोल के मंच पर
उतरे नन्हे छबीकर ,
उस दृश्य में छिपा एक व्रतांत
प्रकर्ति का वो आवश्यक कर्त्तान्त
प्रकर्ति का वो आवश्यक कर्त्तान्त
देख रही एक फनकार
विडंबना ये कैसी
बारिश की ये नन्ही बुँदे कहीं ,
दे रही नवजीवन का अहसास
दे रही नवजीवन का अहसास
तो कहीं बन रही त्राहि का निकास।।
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