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Thursday, 10 March 2016

अंत में ही हैं आरम्भ का आख्यापन


 
लाल गुलाबी पीले फूल,
खिले उपवन -उपवन ,
भरमाते भवरे बाघों में,
लहराती सरसों खेतो में ,
चेह्चाते पक्षी डालो पे ,
मानो कहना चाह रहे हो की   
छेड़ी हैं प्रकर्ति ने फिर  एक नयी धुन।।
नीमो  की सुखी डाली पे
मंजरी और फूटती नव कोपल ,
हुआ हैं पतझड़ के बाद बसंत का आगमन ,
देने  निर्देशन  
'अंत में ही हैं आरम्भ का आख्यापन' 
विस्तृत प्रकृति का हर अंश लेता नया ढंग।,
बनने अवयव उस चक्र का,
जिसके अस्तित्व का सर्जक हैं परम।।
 
 
 
Image Source- educationalneuroscience.org

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