Monday, 30 November 2015

रंगो की वार्ता


नीला ,पीला ,लाल ,हरा ,
रंगो से ये जहाँ भरा। 
इन रंगो की एक दिन 
 हो रही थी सभा ,
सभी कर रहे थे
अपनी महिमा बयां।।
सबसे पहले हरा रंग आया ,
खुद को सबसे प्रांशु बताया,
प्रकर्ति का एक मुलभुत
मुझ से ही दर्शाया। 
वंही नीला रंग मंच पे आया 
अंबर से लेकर जल की धरा  
सब में मै ही समाया।
इतराते हुए लाल पीले रंग
 ने भी अपना पक्ष सुनाया 
खिलती धुप की लालिमा
 में सबने हममे ही पाया।।
सफ़ेद रंग दूर खड़ा ,
सोच रहा अपनी पंक्तियाँ। 
बाकी रंगो ने प्रश्न उठाया,
सफ़ेद को बेरंग बताया। 
ये कहते हुए सफ़ेद ने
अपना महत्व बताया, 
जिसमे चाहूँ उसमे ढल जाऊं 
खो कर अपना अस्तित्व
तुमको नई  पहचान दिलाऊँ।। 
 
 

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Tuesday, 24 November 2015

khoj




अनसुलझे  सवालो को  मन में लिए ,
मुसाफिर चला। 
खोजता वो जवाबो को ,
भटका यहाँ वहां। 
पूछता वो सबसे ,
क्या हैं वो मंज़िल बता।।
समेटता सबके विचारों  को ,
थक कर आ पहुंचा ,
वो उस जगह ,
जहाँ मिल रहे  जमीं  और आसमा ,
जहाँ निर्मल बहते जल की धवनि ,
शीतल कर रही सूर्य की ऊष्मा ,
जहाँ वृक्ष  की शाखाएँ हवा संग
कर रही अटखेलियाँ।। 
बैठा दो घडी वो वहां ,
टटोलता अपने मन को ,
खोजता खुद  को ,
सहेजा उसने आँखो में,
 प्रकृति का वो असीम समां ,
और जान गया उसे ,
जिसकी 
 "खोज" 
था कर रहा।।
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